वैदिक गणित के माध्यम से संस्कृत पाठशाला के बालक ने जीती गणित की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता |

साबरमती अहमदाबाद के प्रसिद्ध गुरुकुल, हेमचंद्राचार्य संस्कृत पाठशाला “गुरूकुलम” के विद्यार्थी तुषार विमलचंद तलावट ने अलोहा इंटरनेश्नल (Aloha International) द्वारा, इंडोनेशिया के सांस्कृतिक नगर योग्यकार्ता में २४ जुलाई २०१६ को आयोजित की गयी  अंतर्राष्ट्रीय गणित प्रतियोगिता (अंकगणित गणना) २०१६” जीत कर पूरी दुनिया में भारतीय गुरुकुलीय शिक्षण पद्धति का परचम लहराया है |

अंक-गणित (गणना) की इस विश्व-स्तरीय प्रतियोगिता में दुनिया भर के कई देशो के १२०० से अधिक चुने हुए ही सम्मिलित हुए थे | उल्लेखनीय है कि भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे गुरूकुलम के विद्यार्थी तुषार ने अक्टूबर २०१५ में  अलोहा इन्डिया (aloha india) द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में ३ मिनिट ३० सेकेंड्स में ७० सवालों को हल करते हुए गुजरात के ५३०० प्रतियोगियों को पराजित कर पहला स्थान प्राप्त किया था | और उसी वर्ष दिसंबर में चेन्नई में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में छः अंको के जोड़-घटाव व तिथि सम्बन्धी ७० सवालों के उत्तर कम्प्यूटर से भी तेज गति से मात्र ३ मिनिट १० सेकण्ड में देते हुए सभी ४३०० प्रतिभागियों को पछाड़ कर प्रथम स्थान के साथ ही अगले स्तर अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के चुने गए थे | गुरुकुल के इस बालक के साथ केलकुलेटर के साथ ताल मिलाने वाले परीक्षक भी उस से पीछे रह गए थे | इस उपलब्धि पर गुजरात राज्य के राज्यपाल म.म. श्री ओ.पी. कोहली ने पुरुस्कृत और मुख्यमंत्री श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने प्रशस्ति पत्र भेज कर बालक का उत्साहवर्धन किया था|  परन्तु २४ जुलाई को इंडोनेशिया में हुआ विश्व-स्तरीय आयोजन, प्रतियोगिता का अधिक कठिन स्तर था जहाँ मुकाबला भी प्रत्येक देश के जीते हुए छात्रों के साथ था | इस उपलब्धि ने जहाँ एक ओर गुजरात के साथ पूरे देश का मान बढ़ाया है वहीँ एक बार फिर हेमचंद्राचार्य संस्कृत पाठशाला ‘गुरूकुलम ’की तरफ पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया है | प्राचीन लुप्तप्राय वैदिक गणित की अति उपयोगी विद्या इस माध्यम से विश्व मंच पर चमकी है | दुनिया के कई देश और वैज्ञानिक संगठन वैदिक गणित का महत्व जानते हुए इसका अध्ययन व शोध कर रहे हैं | परन्तु भारत में स्कूली शिक्षा में इसकी उपेक्षा किये जाने से भारत के बालक गणित की इस अति सरल व लघु गणना विधि से वंचित रहे हैं | तुषार जैसे अनेक देश-विदेश से आये बालकों का यह सौभाग्य है कि उन्हें हेमचंद्राचार्य संस्कृत पाठशाला में श्रेष्ठ शिक्षकों के साथ इसका अध्ययन करने का अवसर मिला है | इसके अतिरिक्त भी तुषार ने हिन्दुस्तान मैथ्स ओलंपियाड जैसी अन्य कई प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया है और हर बार महर्षियों द्वारा प्रस्थापित गुरुकुलीय शिक्षण प्रणाली और भारतीय शिक्षा का मान बढ़ाया है | हेमचंद्राचार्य संस्कृत पाठशाला पूर्णतः निशुल्क व विशुद्ध भारतीय शैली से अध्ययन कराने वाली संस्था है | जैसा कि यहाँ डिग्री – प्रमाण पत्र आदि देने के बजाय संस्कृत-शास्त्र की शिक्षा, तथा जीवन में पग पग पर काम में आने वाली विद्या व कला को ही प्राथमिकता दी जाती है |  इस पाठशाला में प्रत्येक बालक अनेक विद्याओं व कलाओं में पारंगत है |  यह सूर्योदय की भांति ही दृढ़ सत्य है कि आने वाले समय में यहाँ से निकलने वाले बालक सम्पूर्ण भारत और विश्व को अपनी प्रतिभा से अचम्भित करने वाले हैं | इस एक संस्कृत पाठशाला ने पूरे भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला दी है | बंगलौर, कोल्हापूर, मुम्बई, जोधपुर, अहमदाबाद जैसे स्थानों पर इस पाठशाला से प्रेरणा लेकर शिक्षा क्षेत्र के राष्ट्रीय संगठन भारतीय शिक्षण मण्डल के सहयोग व मार्गदर्शन में  इसी की भांति ही अनेक गुरुकुल-पाठशाला प्रारंभ भी हुयी हैं| भारतीय शिक्षण मण्डल के अखिल भारतीय सह-संगठन मन्त्री श्री मुकुलजी कानिटकर ने इस खबर पर हर्ष जताते हुए कहा कि आने वाले समय में देश के प्रत्येक जिले में ऐसे ही गुरुकुलों की स्थापना होगी | इस हेतु से देश को श्रेष्ठ शिक्षक उपलब्ध हों, अतः आचार्य-निर्माण कार्य हेतु  संगठन प्रमुखता से कार्य कर रहा है | तुषार व उसके वैदिक-गणित विषय के गुरुजी श्री जयेंद्रभाई राठौड़  की इस गौरवशाली उपलब्धि पर उन्हें बधाई देने के अवसर पर गुरुकुल के कुलपति व संचालक श्री उत्तमभाई जवानमलजी शाह बताते हैं कि “ऋषि-महर्षियों द्वारा दिखाई गयी शिक्षा की यह गुरुकुलीय पद्द्ति ही वास्तविक शिक्षण पद्धति है क्योंकि यह बहुत कम समय में बालको में गुणात्मक परिवर्तन लाती है | आज शिक्षा की पद्धति तो मात्र नौकर बनने और रोजगार हेतु प्रमाण-पत्र प्राप्त करने का जरिया मात्र बनकर अपने मूल उद्देश्य से भटकी हुयी है, चरित्र और मानवीय-गुण विकास तो आज सिलैबस में ही नहीं है, इसीलिए आज तनाव, हिंसा, भ्रष्टाचार और बलात्कार के आंकड़े ही बढे हैं, मानवता तो अभी २०० साल पीछे के स्थान पर ही खड़ी रह गयी है” |

5 Comments Add yours

  1. Shiv Hari Goswami says:

    howmany such Tushar,second to none could be produced under the roof of this school. only one boy is the exception. and exceptions don’t make rules.

    Like

    1. आदरणीय आपकी बात सही है, परन्तु इस विद्यालय की विशेषता तुषार में नहीं है, यह तो प्रचार का एक माध्यम था, यह २४ कैरेट भारतीय व्यवस्था के अंतर्गत आने वाला विद्यालय है, यहाँ सिलैबस के लिए किसी सरकार से परमिशन कि जरुरत नहीं है,हमारे मोडर्न स्कूल काजल की कोठरी हैं जहाँ कितनी भी अच्छी शिक्षा दी जाए, कोई न कोई गड़बड़ी होती ही है | दूसरा नार्मल स्कूल का कोर्स बंधा हुआ है | लेकिन इस गुरुकुल में ऐसा नहीं है | इसलिए एचीवमेंट को छोडिये, और इस प्रयास को सपोर्ट कीजिये !

      Like

  2. sc mudgal says:

    great achievement !

    Like

Leave a comment